बहादुरगढ़ आज तक, विनोद कुमार
शहर का अंबेडकर स्टेडियम पिछले कई वर्षों से घुमन्तु समुदाय के लोगों के लिए वरदान साबित हो रहा है। इन में से बहुत से ऐसे लोग हैं जो दो दिन स्टेडियम की चारदीवारी में डेरा डालते हैं, उसके बाद अपने डेरे के साथ चले जाते हैं। उनके जाने के बाद नया डेरा कहां से आता है कहां चला जाता है, किसी के पास कोई रिकॉर्ड या पुलिस वेरिफिकेशन नहीं होती।
घुमन्तु जाति के इन लोगों के बच्चें सुबह शिकार के लिए निकल जाते हैं। इनको तीतर, मोर, चिड़िया, कबूतर आदि पक्षियों का शिकार करते हैं। इनके छोटे बच्चे पार्को, स्टेशन, बस अड्डा, बाजार आदि स्थानों पर भीख मांगने का काम करते हैं। मौका मिलते ही ये लोगों का सामान भी लेकर भाग जाते हैं। इनमें से कुछ परिवारों की महिलाएं देहव्यापार के धंधे से भी जुड़ी हैं। जो सुबह जल्दी ही हाईवे पर अपने ग्राहकों की तलाश में निकल पड़ती हैं। इनके ग्राहक अधिकतर बड़े वाहन चालक होते हैं। इसके अलावा स्कूल, कॉलेज के युवाओं को भी एड्स के रूप में इनसे मौत मिल रही हैं। स्टेडियम के अंदर रहने वाले करीब 200 परिवार पेड़ो को काटकर अपना भोजन पकाते हैं। पिछले कई वर्षों में सैकड़ों पेड़ इनकी भेंट चढ़ गए। उस प्रकार यहां अवेध तरीके से रहने वाले ये लोग के पर्यावरण के लिए भी बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं। इन लोगों ने करीब 25-30 घोड़िया भी स्टेडियम की चारदीवारी में पाल रखी हैं। इन घोड़ियों को ये लोग दिनभर खुला रखते हैं, जोकि सड़कों पर घूमते हुए कई बार दुर्घटनाओं का कारण भी बन जाती हैं। सूत्रों की माने तो स्टेडियम के आसपास की झुग्गियों में कई परिवार नशे की पुड़िया बेचने का काम भी करते हैं, जिसके चलते स्टेडियम के आसपास नशेड़ियों का जमावड़ा लगा रहता है। स्टेडियम के पास टाउन पार्क में पौधों के लिए लगाए गए नलों का सारा पानी ये प्रयोग कर लेते हैं। ये लोग प्लास्टिक की थैलियां व तार आदि जलाकर स्टेडियम व इसके आसपास प्रदूषण भी फैलाते हैं।
सूत्रों की माने तो असामाजिक तत्वों के लिए भी अपराध करने के बाद छिपने के लिए ये झुग्गियां सबसे सुरक्षित स्थान हैं। क्योंकि यहां रहने वालों की ना तो पुलिस वेरिफिकेशन होती और कौन सा झुग्गी वाला कहां से आता है और कहां जाता है इसका कोई रिकॉर्ड किसी के पास नहीं होता।

