बहादुरगढ़ आज तक, विनोद कुमार
हमारी भारतीय संस्कृति में ऋषि चिंतन ‘सर्वेभवंतु सुखिन: अर्थात् सब सुखी रहें और ‘सर्वे संतुनिरामया सब स्वस्थ रहें, का है। केवल किसी वेष या मत मजहब के आधार पर न तो ऋषि शब्द बना है और न ही किसी विशेष ग्रंथ के आधार पर। नैमिषारण्य में उनके समक्ष समस्या किसी परिवार-समाज अथवा राष्ट्र की नहीं समस्त प्राणीमात्र के लिए है। यदि भाव आसुरी है, छीना झपटी का है तो परस्पर देर-सवेर युद्धों की संभावना बनी ही रहेगी। फिर फर्क नहीं पड़ता कि कौन घर या मंदिर में है या फिर संसद में। कुछ लोगों की मन-मर्जी और स्वेच्छाचार की वृत्ति का परिणाम आज पूरी दुनिया भुगत रही है। नाम चाहे अमेरिका या चीन का आए अथवा परस्पर पति-पत्नी का ही संबंध क्यों न हो। आसुरी भाव यदि नहीं समाप्त होता तो अपराध और अपराधी समाप्त नहीं हो सकते भले ही बड़ी और कड़ी सजाएं ही क्यों न मिल जाएं। पुराण के ऋषि जिनके लिए महामति शब्द का प्रयोग किया है, वे केवल एक उपहार इसी समस्या के समाधान के रूप में देना चाहते हैं अपनी अगली पीढ़ी को और यही निवेदन करते हैं श्री सूत जी को कि कृपा कर आप यह बताएं कि जीवन सदाचारी, बुद्धि विवेकी और मन आसुरी भाव से मुक्त कैसे हो। हृदय सद्भाव से भरी भक्ति वाला कैसे हो- इन प्रश्नों का उत्तर- समाधान जीवन का परम लाभ है। श्री हरदिल मिलाप सभा(रजि.) की ओर से श्री संकट मोचन शिव-हनुमान मंदिर बहादुरगढ़ में आयोजित शिव पुराण कथा सार यज्ञ में पूज्य गुरूदेव गीता ज्ञानेश्वर डॉ. स्वामी दिव्यानंद जी महाराज ने कहा कि केवल शिवपुराण की पोथी ही नही, शिव को विवेक, भक्ति, ज्ञान- धर्म यदि प्रत्यक्ष में देखना है तो प्रभु श्री राम और शिव में देखें, उनके आचरणों में देखें। जटिल से भी जटिल कोई समस्या आए, मन व्यथित हो, संशय ग्रसत और क्या करें या क्या न करें? की स्थिति में हो तो ग्रंथ भाषा की दृष्टि से न भी समझ में आए तो इन अवतारों और प्रवर्तक महापुरुषों के चरित्रों को देखो अवश्य समाधान मिलेगा। आज यज्ञ के रूप में दिनेश चावला, राजीव लखीना, समाज सेवी डॉ. वी.के. शर्मा, मनोहर काठपालिया तथा दीपक मल्होत्रा ( दिल्ली)ने महाराज जी से आशीर्वाद लिया। इस अवसर पर श्री गौधन सेवा समिति बहादुरगढ़ के गोभक्तों ने भी परम् पूज्य स्वामी जी से आशीर्वाद लिया ।
