बहादुरगढ़ आज तक, विनोद कुमार
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में कलमवीर विचार मंच द्वारा वार्ड नं.14 स्थित विवेकानंद पार्क में भव्य काव्योत्सव एवं सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि सरिता सैनी व क्षेत्रीय पार्षद जसबीर सैनी के सानिध्य में आयोजित इस कार्यक्रम में शिक्षा,साहित्य व समाजसेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए डॉ.मंजु दलाल व आशा शर्मा को भी सम्मानित किया गया। चरखीदादरी से पधारीं कवयित्री पुष्पलता आर्य की सरस्वती वंदना से शुरू हुए इस कार्यक्रम का मंच संचालन भिवानी के प्रसिद्ध कवि विकास यशकीर्ति ने किया। काव्योत्सव में विरेन्द्र कौशिक, मनोज दहिया कमल, कौशल समीर आदि ने जहां नारी शक्ति को समर्पित रचनाओं से उपस्थित श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया वहीं सतपाल स्नेही और सुरेश वकील ने अपनी हास्यप्रधान हरियाणवी प्रस्तुति से लोगों को खूब गुदगुदाया। इस अवसर पर क्षेत्र के विकास में गहरी रुचि लेते रहे पार्षद जसबीर सैनी को उपस्थित जनसमूह द्वारा संयुक्त रूप से सम्मानित किया गया।
अपने सामूहिक अभिनंदन से अभिभूत सैनी दंपति ने कहा कि आप सभी के प्यार की बदौलत ही जनसेवा का जो अवसर हमें मिला है उसके बदले में हमारे माध्यम से क्षेत्र का जितना भी विकास अब तक हो पाया है यह भी आप सभी के विश्वासपूर्ण सहयोग का परिणाम है। देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में नगर की सबसे छोटी इकाई के प्रतिनिधि के रूप में हमारे परिवार का हिस्सा बन चुके लोगों के उपकार का ऋण चुकाने के लिए भविष्य में भी हमारे प्रयास जारी रहेंगे।
कार्यक्रम में सुनाई गई कुछ कविताओं की बानगी
पत्थरों में उगीं दूब की क्यारियाँ,
आज की नारियाँ आज की नारियाँ।
अपने दर्पण में खुद ही संवरने लगी,
रंग अपने मुकद्दर में भरने लगी।
खुद बनाने लगी हाथ में धारियाँ…
(पुष्पलता आर्य)
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अनजानी कुछ खुशियों का संसार समेटे बैठी हूं।
औरत हूं मैं मर्दों का घरबार समेटे बैठी हूं।
माता, बहना, बीवी,बिटिया और कितने ही रूप मेरे,
खुद में देखो मैं कितने किरदार समेटे बैठी हूं।
(विकास यशकीर्ति)
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वो माँ-बाब्बू तै नहीं डरया
साँप का काट्या नहीं मरया
रै घर मै जोरू जब आगी
हेकड़ी सारी बल़ खागी
रै माणस न्यूँ भी मरया करै..
(सतपाल स्नेही)
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मन मेरा देखे ख्वाब सुनहरे,
खूब पढूं,आगे बढूं,
छू आऊं अम्बर के तारे।
(डॉ.मंजु दलाल)
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लोरी गा गा के मुझको सुनाती रही,
गोद में मेरा सिर रख सुलाती रही।
मेरे दिल में वो ममता की मूरत बसी, याद हर पल मुझे उसकी आती रही ।
(विरेन्द्र कौशिक)
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इसीलिए तो कहा है नारी,
सदा बनो प्रियतम की प्यारी।
जो पतिव्रता धर्म धरेगी,
सीता उसके संग रहेगी।
(मनोज कमल)
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माँ होती तो समझ जाती,
मुस्कुराहट में छिपा दर्द।
महफ़िल में छलकती वीरानी,
लफ्ज़ो में छिपी खामोशी।
नम आंख का पानी,
माँ होती तो समझ जाती।
(कौशल समीर)